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सुनीता राजवार ने ‘संतोष’ के ऑस्कर नॉमिनेशन पर जताई खुशी:  एक्ट्रेस बोलीं- अवार्ड मिले या न मिले, असली जीत नॉमिनेशन है

सुनीता राजवार ने ‘संतोष’ के ऑस्कर नॉमिनेशन पर जताई खुशी: एक्ट्रेस बोलीं- अवार्ड मिले या न मिले, असली जीत नॉमिनेशन है


13 मिनट पहलेलेखक: किरण जैन

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संध्या सूरी की फिल्म ‘संतोष’ को यूके ने ऑस्कर 2025 के लिए बेस्ट इंटरनेशनल फीचर फिल्म के तौर पर चुना है, जो ‘लापता लेडीज’ के बाद एक और बड़ी सफलता है। इस फिल्म में शहाना गोस्वामी और सुनीता राजवार मुख्य भूमिका में हैं।

बता दें, इस फिल्म का चयन बाफ्टा ने किया है। इस ऑर्गनाइजेशन को यूके की तरफ से एंट्री सबमिट करने के लिए अपॉइंट किया गया है।

दैनिक भास्कर से बात करते हुए सुनीता राजवार ने फिल्म के ऑस्कर के लिए नॉमिनेट होने पर अपनी खुशी जाहिर की। पढ़िए बातचीत के कुछ प्रमुख अंश:

जब आपको पता चला कि फिल्म ‘संतोष’ ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हो गई है, तो आपका क्या रिएक्शन था?

यह वाकई ‘बियॉंड ड्रीम्स’ वाली बात है। पहले तो कांस फिल्म फेस्टिवल का अनुभव ही बहुत बड़ा था और अब ऑस्कर, तो मैंने ऐसा सोचा ही नहीं था। यह एक अलग ही स्तर का अनुभव है। जब पहली बार मुझे इस बारे में बताया गया, तो मेरे लिए यह सब बहुत रोमांचक था। ये कुछ ऐसा है जो किसी ने सोचा नहीं था। अब जब हम इस मुकाम पर हैं, तो यह सच में खास लग रहा है।

कंटेंट-बेस्ड फिल्मों को बड़े मंच पर दिखाना कितना महत्वपूर्ण है?

जी, बिल्कुल। फिल्में जो कंटेंट के आधार पर बनाई जाती हैं, उन्हें इस प्रकार के प्लेटफार्म का होना बहुत जरूरी है ताकि लोग उन्हें देख सकें। जब लोगों को ऐसी फिल्में देखने का मौका मिलता है, तो इससे लोग नई सोच और कहानियों के लिए ज्यादा खुलते हैं।

अगर किसी के पास एक अच्छा सब्जेक्ट है, तो उसे यह मौका मिलना चाहिए कि वह एक अच्छी फिल्म बना सके। बहुत बार लोग सोचते हैं कि – अरे, ये तो चलेगा नहीं, या फिर उन्हें प्रोड्यूसर्स नहीं मिलते। इस तरह की सोच और चुनौतियां होती हैं। लेकिन अगर इस फिल्म को अधिक लोगों तक पहुंचाया जाए, तो इससे दूसरों के लिए भी रास्ते खुलते हैं। एक अच्छी फिल्म का प्रोत्साहन मिलने से, दूसरे लोग भी प्रेरित होते हैं कि वे अपनी कहानियां सुनाने का प्रयास करें।

शूटिंग का अनुभव कैसा था?

हमने पूरा एक स्ट्रेच में शूट किया था, लगभग 30-35 दिनों तक। कोई ब्रेक नहीं था। पूरी फिल्म की शूटिंग लखनऊ के आउटकट्स में हुई है। हमारी पूरी टीम में साउंड डिपार्टमेंट, डायरेक्टर, कैमरामैन, सब बाहर के थे। सब अंग्रेज थे और वो बहुत डिसिप्लिन में काम करते थे। ऐसा कभी नहीं हुआ कि 7:00 बजे की शिफ्ट में हम साढ़े 8:00 बजे तक बैठे रहें।

हमने पूरी फिल्म बनाई और जहां-जहां रूरल एरिया में गए, कभी भी साउंड की प्रॉब्लम नहीं आई। काम करने का अनुभव बहुत अलग था। सब कुछ सिस्टेमेटिक था। प्रॉपर रीडिंग हुई, वर्कशॉप हुई और छोटे-छोटे फाइट सीक्वेंस भी थे। पिछले साल अक्टूबर में बारिश हो गई थी, और हमारा पूरा शूटिंग शेड्यूल गड़बड़ हो गया था। लेकिन फिर भी काम बहुत अच्छे से हुआ।

फिल्म ‘लापता लेडीज’ भी ऑस्कर के लिए नॉमिनेट हुई है। इस पर आपका क्या कहना है?

यह फिल्म इंडियन फिल्मों का एक अच्छा उदाहरण है। जब मैंने सुना कि इस फिल्म को ऑस्कर के लिए चुना गया, तो काफी गर्व महसूस हुआ। खुशी इस बात की थी कि भारत से भी एक फिल्म जा रही है। ऐसे समय में जब हम सभी अपने देश की फिल्मों के लिए खुश होते हैं, तब यह और भी महत्वपूर्ण हो जाता है। मेरी दोस्त गीता अग्रवाल भी इसमें हैं और मुझे उसकी सफलता पर गर्व है। आजकल हमारी इंडस्ट्री में कलाकारों के बीच एक पॉजिटिव माहौल है। हम सब एक-दूसरे को सपोर्ट करते हैं। कॉम्पिटिशन तो है, लेकिन ये एक हेल्दी कॉम्पिटिशन है।

आपके लिए अवार्ड्स कितने मायने रखते हैं?

अवार्ड्स मायने रखते हैं, लेकिन मैं हमेशा अपनी दोस्तों से कहती हूं कि नॉमिनेशन ज्यादा जरूरी है। अवार्ड मिलना या न मिलना उस दिन का है, लेकिन नॉमिनेशन मतलब कि आपके काम को नोटिस किया गया है। इससे बड़ी बात कुछ नहीं।

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