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हरियाणा में BJP की हैट्रिक के पीछे की स्ट्रैटजी:  विधायकों-मंत्रियों के टिकट काटकर एंटी इनकम्बेंसी से निपटा; 23 सीटों पर चेहरे बदलने समेत 5 वजहें – Haryana News

हरियाणा में BJP की हैट्रिक के पीछे की स्ट्रैटजी: विधायकों-मंत्रियों के टिकट काटकर एंटी इनकम्बेंसी से निपटा; 23 सीटों पर चेहरे बदलने समेत 5 वजहें – Haryana News


भाजपा हरियाणा के इतिहास में लगातार तीसरी बार सरकार बनाने वाली पार्टी बन गई है। पार्टी ने 2014 के 10 साल बाद, इस बार फिर से अपने बूते पूर्ण बहुमत हासिल किया है। मंगलवार को आए चुनावी नतीजों में वह राज्य की 90 विधानसभा सीटों में से 48 पर जीत दर्ज कर चुक

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भाजपा के खिलाफ एंटी इनकम्बेंसी और सत्ता विरोधी लहर का दम भरने वाली कांग्रेस की हवा चुनावी नतीजों में निकल गई। पूर्व सीएम भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा की अगुआई में कांग्रेस की 2019 के मुकाबले 5 सीटें बढ़ीं, लेकिन वह बहुमत के आंकड़े तक नहीं पहुंच पाई और 37 सीटों पर सिमट गई।

भाजपा की इस हैट्रिक के पीछे कई फैक्टर रहे। पार्टी ने लोगों के गुस्से से निपटने के लिए 4 मंत्रियों समेत अपने एक तिहाई MLA के टिकट काट दिए थे। 2019 में उसके जो 23 चेहरे जीत नहीं पाए थे, इस बार उनकी जगह नए लोगों को मौका दिया गया और उनमें से 12 विजयी रहे।

लोकसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस के पक्ष में एकजुट रहे दलित वोटों के अंदर सेंध लगाने में भी भाजपा के रणनीतिकार कामयाब रहे। पूरे चुनाव प्रचार के दौरान उसके नेताओं ने जिस तरह कांग्रेस सांसद कुमारी सैलजा के प्रति सहानुभूति दिखाई और उनकी उपेक्षा का मुद्दा लगातार उठाया, उसका फायदा पार्टी को मिला।

सिलसिलेवार ढंग से समझिए BJP की लगातार तीसरी जीत के 5 कारण

1. 14 विधायकों के टिकट काटे, 12 सीटें फिर से जीत लीं BJP ने एंट्री इनकम्बेंसी से निपटने के लिए अपने 4 मंत्रियों समेत 14 विधायकों के टिकट काटकर उनकी सीट से नए चेहरों को मौका दिया था। यह दांव सटीक बैठा और पार्टी इनमें से 12 सीटें जीतने में कामयाब रही। दरअसल, हाईकमान यह भांप चुका था कि लोग पार्टी की नीतियों से नहीं बल्कि लोकल विधायकों-मंत्रियों से खफा हैं।

जिन सीटों पर पार्टी ने चेहरे बदले, उनमें पलवल, फरीदाबाद व गुरुग्राम जैसी शहरी और बवानी खेड़ा, रानियां, अटेली, पिहोवा, सोहना व राई जैसी ग्रामीण सीट शामिल रही। पिहोवा और रतिया में पार्टी की यह रणनीति कामयाब नहीं रही।

2. सीएम समेत 3 MLA की सीट बदली, दो जीते भाजपा हाईकमान ने सीएम नायब सिंह सैनी समेत तीन विधायकों की सीटें भी इस बार बदल दी थीं। इनमें लक्ष्मण यादव को कोसली की जगह रेवाड़ी और संजय सिंह को सोहना की जगह नूंह शिफ्ट किया गया। लक्ष्मण यादव रेवाड़ी में विजयी रहे। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी को भी करनाल की जगह लाडवा शिफ्ट किया गया। उन्होंने वहां कांग्रेस के सिटिंग MLA मेवा सिंह को हराया। नूंह सीट से संजय सिंह हार गए।

3. बीजेपी ने 23 सीटों पर चेहरे बदले, 12 पर जीत मिली भाजपा ने 15 विधायकों के अलावा राज्य की 90 में से 23 सीटों पर नए चेहरों को मौका दिया। 2019 में यहां उसके जो नेता चुनाव हार चुके थे, उन्हें फिर से मैदान में नहीं उतारा गया। इन 23 में से 12 चेहरे विजयी रहे।

इनमें करनाल से जगमोहन आनंद, समालखा से मनमोहन भड़ाना, खरखौदा (SC) से पवन खरखौदा, सोनीपत से निखिल मदान और नलवा से रणधीर सिंह पनिहार शामिल हैं। बाढड़ा से उमेद सिंह पातुवास, दादरी से सुनील सतपाल सांगवान, कोसली से अनिल यादव डहीना, फरीदाबाद NIT से सतीश फागना, तोशाम में श्रुति चौधरी, कालका से शक्तिरानी शर्मा और उचाना से देवेंद्र अत्री भी जीत गए।

भाजपा चेहरे बदलने के बावजूद जिन 11 सीटों पर नहीं जीत पाई, उनमें शाहाबाद (SC), पिहोवा, रतिया (SC), कालांवली (SC), रानियां, महम, गढ़ी-सांपला-किलोई, कलानौर (SC), बहादुरगढ़, झज्जर (SC) और बेरी शामिल रही।

4. 17 SC सीटों में से 8 सीटें जीतीं हरियाणा में 17 विधानसभा सीटें अनुसूचित जाति के लिए रिजर्व हैं। इनमें अंबाला जिले की मुलाना, यमुनानगर की साढौरा, कुरुक्षेत्र की शाहाबाद, कैथल की गुहला, करनाल की नीलोखेड़ी, पानीपत की इसराना, सोनीपत की खरखौदा, जींद की नरवाना, सिरसा की कालांवाली, फतेहाबाद की रतिया, हिसार की उकलाना, भिवानी की बवानीखेड़ा, झज्जर की झज्जर, रोहतक की कलानौर, रेवाड़ी की बावल, गुरुग्राम की पटौदी और पलवल जिले की होडल सीट शामिल हैं।

इनमें से बवानी-खेड़ा, पटौदी, खरखौदा, नरवाना, नीलोखड़ी, बावल, इसराना और होडल पार्टी ने जीत ली। बाकी 7 सीटें कांग्रेस ने जीतीं।

5. हुड्‌डा को सबसे बड़ा झटका जाटलैंड के सोनीपत में हरियाणा में कांग्रेस को सबसे बड़ा झटका जाटलैंड में आने वाले रोहतक, झज्जर व सोनीपत जिले में लगा। यह इलाका भूपेंद्र सिंह हुड्‌डा का गढ़ कहा जाता है। भाजपा ने इस बार सोनीपत की 6 में से 4 सीटें जीत लीं। इनमें गोहाना, खरखौदा, राई व सोनीपत शामिल हैं।

गोहाना और खरखौदा सीटें तो पार्टी ने पहली बार जीतीं। 2014 व 2019 की मोदी वेव में भी कांग्रेस ने इन सीटों पर कब्जा बरकरार रखा था, लेकिन इस बार हुड्‌डा का यह गढ़ ढह गया। सोनीपत जिले की गन्नौर सीट पर भाजपा के बागी देवेंद्र कादियान बतौर निर्दलीय कैंडिडेट विजयी रहे। कांग्रेस सोनीपत जिले में सिर्फ बरौदा सीट जीत पाई।

5. अहीरवाल में 2014 जैसा प्रदर्शन भाजपा ने अपने गढ़ अहीरवाल में इस बार 10 साल पुराना प्रदर्शन दोहराया। 2014 की मोदी वेव में BJP ने अहीरवाल में आने वाले रेवाड़ी, गुरुग्राम व महेंद्रगढ़ जिले की सभी 11 सीटें जीती थीं। 2019 में वह यहां 8 सीटें जीती। इस बार पार्टी 11 में से 9 सीटों पर विजयी रही। हालांकि लगातार दो बार से जीती नांगल चौधरी सीट इस बार भाजपा के हाथ से निकल गई।

युवाओं से जुड़े 2 बड़े मुद्दों पर फोकस किया

अग्निवीर को पेंशन वाली सरकारी नौकरी हरियाणा ऐसा राज्य है जहां से बड़ी संख्या में युवा सेना में जाते हैं। यहां अग्निवीर के 4 साल में रिटायर होने को कांग्रेस ने मुद्दा बना लिया। BJP ने इसी मुद्दे को अपने फायदे में बदल दिया। भाजपा ने अपने घोषणा पत्र में वादा कर दिया कि हर अग्निवीर को पेंशन वाली सरकारी नौकरी दी जाएगी। पीएम नरेंद्र मोदी और गृह मंत्री अमित शाह ने भी रैलियों में इसका भरोसा दिलाया। कांग्रेस अपने घोषणा पत्र में ऐसा कोई ठोस वादा नहीं कर पाई।

बिना पची-खर्ची सरकारी नौकरी बीजेपी लगातार कहती रही कि पिछले 10 सालों में उन्होंने सरकारी नौकरी में पर्ची-खर्ची यानी सिफारिश और रिश्वत का सिस्टम खत्म किया है। इसके उलट कांग्रेस के उम्मीदवारों ने चुनाव के बीच ही सरकारी नौकरियों को लेकर सिफारिशी बातें कहनी शुरू कर दीं।

कांग्रेस के कई कैंडिडेट्स ने तो कोटा तक फिक्स कर दिया। ऐसा वादा करने वाले नीरज शर्मा, कुलदीप शर्मा समेत कई नेता चुनाव ही हार गए। राज्य में करीब 18 से 39 साल के 94 लाख से ज्यादा वोटर हैं, जिनके बीच इसको लेकर कांग्रेस के खिलाफ गलत मैसेज गया।

कांग्रेस के 28 में से 14 विधायक हारे कांग्रेस ने अपने सभी 28 विधायकों को टिकट दिया था, लेकिन इनमें से 15 जीत नहीं पाए। हारने वालों में फरीदाबाद एनआईटी के विधायक नीरज शर्मा भी शामिल रहे। नीरज शर्मा भाजपा सरकार के खिलाफ अपने परिधान को लेकर विशेष रूप से सुर्खियों में रहे। उनके अलावा बहादुरगढ़ से राजिंदर सिंह जून, सफीदों से सुभाष गंगोली, लाडवा से मेवा सिंह, महेंद्रगढ़ से राव दान सिंह, कालका से प्रदीप चौधरी, इसराना से बलबीर वाल्मीकि, समालखा से धर्मसिंह छौक्कर, रेवाड़ी से चिरंजीव राव, गोहाना से जगबीर सिंह मलिक, खरखौदा से जयवीर सिंह, सोनीपत से सुरेंद्र पंवार और रादौर के विधायक बिशनलाल सैनी भी हार गए।



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