मौन व्रत पूरा करने के लिए वृंदावन पहुंचे बुंदेलखंड के मौन व्रत रखने वाले लोग
दीपों के पर्व दीपावली पर ब्रज में बुंदेली दिवाली की झलक देखने को मिल रही है। यहां बुंदेलखंड के 51 जिलों से लोग आए हैं। इनमें बड़ी संख्या उनकी है जो 12 साल से दिवाली पर मौन व्रत रखते हैं और 13 वें साल वृंदावन में यमुना स्नान कर व्रत पूरा करते हैं। अलग
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12 वर्ष रखते हैं मौन व्रत
बुंदेलखंड में दिवाली पर अलग परम्परा का निर्वहन किया जाता है। यहां ज्यादातर लोग अपनी मान्यता रखने के लिए 12 वर्ष तक दिवाली के दिन मौन व्रत रखते हैं। इसके बाद यह लोग दिवाली का पूजन करते हैं और फिर प्रतिप्रदा के दिन 13 वें वर्ष वृंदावन में यमुना स्नान कर अपना मौन व्रत पूरा करते हैं।
यह हमीरपुर के रहने वाले राधे गुप्ता हैं जो 12 साल से दिवाली पर मौन व्रत रख रहे थे
मौन व्रत को कहते हैं गौचारण मौन व्रत
बुंदेली दिवाली को गौचारण भी कहा जाता है। गौचारण मौन व्रत का उल्लेख धर्मशास्त्र निर्णय सिंधु में भी मिलता है। आचार्य अवधेश बादल ने बताया कि गौचारण व्रत जिसे मौन व्रत कहा जाता है इसकी शुरुआत दीपावली पर्व से होती है। मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश का बुंदेलखंड के हिस्से में रहने वाले लोग इसे अपनी भाषा में मोहनिया कहते हैं।

मौन व्रत की शुरुआत दिवाली पर्व से होती है
12 साल तक एकत्रित करते हैं मोर पंख
गौचारण व्रत या मौन व्रत को रखने वाले लोग इसे पूरा करने के लिए दिवाली से पहले जंगलों में जाते हैं। इस दौरान वह मोर के द्वारा छोड़े गए पंखों को एकत्रित करते हैं। इन पंखों को वह 12 साल तक अपने साथ रखते हैं और 13 वें साल वृंदावन में आकर यमुना में अर्पण कर देते हैं। पहले वर्ष कम से कम 5 मोर पंख एकत्रित करने होते हैं उसके बाद हर साल उसमें क्षमता अनुसार 11,21 मोर पंख जोड़ते चले जाते हैं। मोर पंख यह लोग न तो खरीदते हैं और न ही पक्षी से तोड़ते हैं।

12 वर्ष तक मौन व्रत रखने वाले जंगलों से मोर पंख एकत्रित करते हैं
गाय की पूंछ के बाल से लगाते हैं गांठ
मौन व्रत रखने वाला व्यक्ति गाय की पूंछ के बाल से रस्सी बनाकर उसमें पहले वर्ष एक गांठ लगाता है। इसके बाद जैसे जैसे वर्ष बढ़ते हैं गांठों की संख्या बढ़ती जाती है। इन्हीं गांठों की संख्या से यह 12 वर्ष पूरे होने की गढ़ना करते हैं।

नृत्य के दौरान लाठी चलाकर प्रदर्शन करते व्रत रखने वाले
नृत्य के साथ गाते हैं बुंदेली दिवाली
गौचारण व्रत या मौन व्रत करने वाले लोग अलग अलग गुट में वृंदावन पहुंचते हैं। यह लोग यहां यमुना किनारे पहुंचते हैं और फिर ढोल और थाप बजाकर करते हैं नाच गाना। इस दौरान जो मौन व्रत नहीं रहते वह लोग बुंदेली दिवाली गाते हैं,जबकि मौन व्रत रखने वाले नाचते हैं।

नाचते गाते मस्ती कर बुंदेली दिवाली मनाते लोग
लाठियों का करते हैं प्रदर्शन
बुंदेली दिवाली के गीतों पर पहले यह लोग मोर पंख लेकर नाचते हैं। इसके बाद ग्रुप का वह हर सदस्य जो मौन व्रत रखा होता है वह अपने साथ लाई लाठी को चलाकर प्रदर्शन करता है। यह इनकी परंपरा का एक हिस्सा है। जिसे यह लोग बखूबी पूरा करते हैं। इस दौरान यमुना की रज को यह अपने ऊपर डालते भी हैं।