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पहलगाम हमले पर डायरेक्टर अनिल शर्मा का रिएक्शन:  बोले- अब सहनशीलता की हदें पार, धर्मों के बीच लड़ाई कराना चाहते हैं क्या?

पहलगाम हमले पर डायरेक्टर अनिल शर्मा का रिएक्शन: बोले- अब सहनशीलता की हदें पार, धर्मों के बीच लड़ाई कराना चाहते हैं क्या?


7 घंटे पहले

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पहलगाम में हुए आतंकी हमले ने पूरे बॉलीवुड जगत को गहरे सदमे में डाल दिया है। फिल्म इंडस्ट्री के तमाम कलाकार और फिल्ममेकर इस घटना पर अपनी नाराजगी जाहिर कर रहे हैं। अब डायरेक्टर अनिल शर्मा ने भी अपना रिएक्शन दिया है। उन्होंने कहा कि अब सहनशीलता की सारी हदें पार हो चुकी हैं। भारत ने कभी भी पहले हमला नहीं किया, लेकिन अब और चुप रहना मुमकिन नहीं है। उन्होंने यह भी कहा कि हमारी फिल्मों में हमेशा शांति और एकता का संदेश दिया जाता है।

ई टाइम्स से बातचीत के दौरान अनिल शर्मा ने कहा, ‘हर फिल्ममेकर ने अपने-अपने तरीके से भारत और पाकिस्तान के बीच हुई लड़ाई को पर्दे पर उतारा है। यश चोपड़ा जी ने अपने खास तरीके से इसे दर्शाया, जबकि ‘बॉर्डर’ ने इसे एक अलग अंदाज में लोगों के सामने पेश किया। जब हमने ‘गदर’ बनाई, तो हमारा संदेश यही था कि मोहब्बत ही सबसे जरूरी है। बंटवारे के दौरान लाखों जिंदगियां खत्म हो गईं। इसके बाद हमें यह सवाल उठाना पड़ा कि अगर दोनों देशों में लोग एक जैसे थे, तो क्या किसी नए देश की आवश्यकता थी? उस वक्त भारत में रह रहे मुसलमानों की जड़ें कहीं न कहीं हिंदुओं से जुड़ी हुई थीं और दोनों के बीच गहरी भाईचारे की भावना थी।’

अनिल शर्मा ने आगे कहा, ‘बंटवारे के समय यह कहा गया था कि पाकिस्तान में रहने वाले हिंदू वहीं रहेंगे और भारत में रहने वाले मुसलमान वहीं रहेंगे। जैसा कि हमने गदर में भी दिखाया था। पाकिस्तान में हिंदुओं को वहां से निकलने के आदेश दिए जा रहे थे। यह सब सत्ता के और धर्म के खेल का परिणाम था, जो इंसानियत को खत्म करता है।

अनिल शर्मा की मानें तो ‘उरी’ और ‘वीर जारा’ जैसी फिल्में पूरी तरह से अलग हैं। अगर कोई हमारे घर में हमला करेगा, तो हम भी उसकी जगह जाकर पलटवार करेंगे। उरी और अनिल शर्मा की पहले अपनी फिल्म ‘तहलका’ में भी यही दिखाया था।

अनिल शर्मा ने कहा, ‘नाम पूछकर हत्या करने का क्या मतलब है? हत्या की जरूरत क्यों पड़ी? क्या आप यह चाहते हैं कि हिंदू और मुसलमानों के बीच लड़ाई हो? यह सब राजनीति की चालें हैं, जहां लोग अपने निजी हितों को पूरा करने के लिए ऐसे माहौल को बढ़ावा देते हैं। अगर दोनों देशों के लोग इंसानियत के रास्ते पर चलने का फैसला करें, तो रिश्तों में सुधार हो सकता है। नेता तो हमेशा राजनीति करेंगे, लेकिन हमें अपने समाज में प्यार और शांति का संदेश फैलाना चाहिए।

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